राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्स से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
६ दिसंबर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये ?
जगमगाते थे जहाँ राम के कदमो के निशाँ
प्यार की कहकशां लेती थी अंगडाई जहाँ
मोड़ नफरत के उसी राह गुज़र में आये
धर्म क्या उनका है? क्या ज़ात है? यह कौन जनता है?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन?
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी है मेरे दोस्त खंजर तुम्हारा
तुमने बाबर की तरफ फेकें थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता जो सर मेरा बीच में आया
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम यह कहते हुए आपने सवारे से उठे
राजधानी की फिजा आई नहीं रास मुझे,
६ दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे.
- कैफ़ी आज़मी
Thursday, September 30, 2010
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would have preferred it in hindi harshita
ReplyDeletehindi shabdo ka maza hindi me hai
:)
but thanks for sharing!
Kaifi Azmi ekdaum sahi farmaye
thx for sharing this :)
ReplyDeletemost apt for the occation.
ReplyDelete@Serendipity done :) shukriya
ReplyDelete@ani :)
@vivek agree with you :)
lovely ... very very significant today ... thank u
ReplyDeleteawesome line this : घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन? :)
ReplyDelete@mMs @ria :)
ReplyDeleteकैफी आजमी की यह रचना दिल को छू जाने वाली है, सवाल तो उठाती ही है
ReplyDeleteThanks Harsita for posting such fine poem by Kaifi Azmi Saab we celebrated his Birth Aiiniversary on 19th jan,2012.
ReplyDeletetake care.
rgds
rajat